Bihar Assembly Election 2025: तेजस्वी यादव के गढ़ राघोपुर के लोगों को उनके वादों पर नहीं यकीन, लेकिन शायद...
बिहार के वैशाली ज़िले की राघोपुर विधानसभा सीट, जिसे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का गढ़ माना जाता है, इस बार चुनावी माहौल में हल्की हलचल महसूस कर रही है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पटना से राघोपुर जाने वाले रास्ते पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 20 साल की सरकार की तीन बड़ी उपलब्धियां दिखती हैं - अटल पथ, जेपी गंगा एक्सप्रेसवे और कच्ची दरगाह-बिदुपुर पुल. लेकिन जैसे ही राघोपुर के ग्रामीण इलाक़े में प्रवेश होता है, बदहाल सड़कों और वार्षिक बाढ़ की तस्वीर सामने आ जाती है.

बिहार की राजनीति में राघोपुर विधानसभा सीट का एक अलग ही महत्व है. यह वही इलाका है जिसने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाया, और अब उनके बेटे तेजस्वी यादव को राजनीति की मुख्यधारा में खड़ा किया. लेकिन जब कोई पटना से महज 30 किलोमीटर दूर इस क्षेत्र की यात्रा करता है, तो तस्वीर चौंका देने वाली होती है.
पटना से वैशाली जिले के राघोपुर तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 20 साल के शासनकाल की तीन सबसे बेहतरीन परियोजनाओं से गुजरना होता है - 6-लेन अटल पथ, 4-लेन जेपी गंगा एक्सप्रेसवे, और हाल ही में उद्घाटित 6-लेन कच्ची दरगाह-बिदुपुर पुल. लेकिन जैसे ही आप गंगा के किनारे बसे इस नदीय द्वीप में प्रवेश करते हैं, विकास के सभी संकेत अचानक गायब हो जाते हैं.
विकास की जगह दलदल: राघोपुर की हकीकत
टूटी सड़कें, अधूरी पगडंडियां और हर साल दो से तीन महीने तक पानी में डूबा रहने वाला इलाका, यही है राघोपुर की असलियत. यह इलाका यादव बहुल है, जहां अधिकांश लोग खेती पर निर्भर हैं. 1995 से लेकर अब तक यह सीट लालू परिवार के पास रही है (सिर्फ 2010-2015 में JD(U) ने कब्जा किया था). तेजस्वी यादव यहां से लगातार दो बार विधायक हैं.
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस बार चुनावी हवा में एक नई हलचल है - चर्चा है कि जन सुराज आंदोलन के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तेजस्वी यादव को यहीं से चुनौती दे सकते हैं. यह सीट 11 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान के लिए जाएगी.
“मेरे नाम में लालू है, पर नौकरी कहीं नहीं”
स्थानीय युवा लालू यादव (29) के पिता ने उनका नाम लालू प्रसाद यादव के नाम पर रखा था. लालू यादव, जो पास के एक निर्माणाधीन पुल पर 50 रुपये प्रति घंटे की मजदूरी करते हैं, कहते हैं, “नीतीश जी 20 साल से मुख्यमंत्री हैं, लेकिन राघोपुर में कुछ नहीं बदला. उन्होंने एक करोड़ नौकरियों का वादा किया था - वो कहां हैं?” उनके बड़े भाई ने कहा कि वे भी तेजस्वी यादव को वोट देंगे, लेकिन नौकरी के वादे पर यकीन नहीं करते. उन्होंने कहा, “मैंने 10वीं तक ही पढ़ाई की है. सरकारी नौकरी तो मेरे बस की नहीं. हमें फैक्टरी और लोकल रोजगार चाहिए.”
महिलाएं बोलीं - “ना पेंशन मिली, ना स्कीम”
मिंटी देवी, जिनके पति का निधन 2023 में हुआ था, कहती हैं, “विधवा पेंशन के लिए महीनों से भाग रही हूं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं. ब्लॉक ऑफिस और कोर्ट के बीच चक्कर लगा रही हूं. किसी को पैसे दिए थे कि अफिडेविट बनवा दे, लेकिन वो पैसे लेकर भाग गया.” इसी तरह जाफराबाद गांव की महिलाएं कहती हैं कि जीविका योजना के तहत उन्हें कोई सहायता नहीं मिली. चन्नू देवी बताती हैं, “मैंने लोन के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब तक पैसा नहीं आया.” वहीं अंजलि कुमारी, जो जीविका योजना से जुड़ी हैं, कहती हैं, “नीतीश जी ने महिलाओं के लिए बहुत काम किया है, लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का ₹10,000 नहीं मिला. तेजस्वी जी ₹2500 प्रति परिवार देने का वादा कर रहे हैं, पर क्या वो सच में देंगे?”
“हर साल घर-खेत बह जाते हैं, विकास की बात कौन करे?”
सुमित राय और अविनाश राय जैसे स्थानीय लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या है गंगा किनारे की कटाव और जर्जर सड़कें. सुमित कहते हैं, “हर साल बाढ़ में घर और खेत बह जाते हैं. जमीन ही नहीं बची तो विकास कैसा? चुनाव के वक्त सब वादे करते हैं, फिर गायब हो जाते हैं.”
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‘पीके’ एक नया चेहरा, पर भरोसा अभी नहीं
65 वर्षीय अरविंद कुमार राय ने लालू, राबड़ी और अब तेजस्वी के दौर देखे हैं. वे कहते हैं कि प्रशांत किशोर एक नया चेहरा जरूर हैं, लेकिन लोग अभी उन पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं. अरविंद कहते हैं, “तेजस्वी के मुकाबले वो नए हैं. लोग सोचते हैं कि उन्हें वोट देने का मतलब वोट बर्बाद करना.”
संजय कुमार राय मानते हैं कि किशोर के विचार “अच्छे” हैं, लेकिन उनका जनाधार कमजोर है. वे कहते हैं, “वो राजनीति में नए हैं. उनके सिद्धांतों और योजनाओं को पकड़ बनाने में वक्त लगेगा.”
“मोदी और नीतीश ने भुला दिया, अब सब सोशल मीडिया से जानते हैं”
मिथिलेश कुमार, जो सोशल मीडिया पर प्रशांत किशोर के वीडियो देखते हैं, कहते हैं, “वो सही कहते हैं - प्रवास और बेरोजगारी खत्म होनी चाहिए. मोदी और नीतीश ने हमें नजरअंदाज कर दिया. चिराग पासवान सांसद बने, लेकिन वो सिर्फ दिल्ली और पटना में घूमते हैं. कहते हैं ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’, पर क्या हम बिहारी नहीं?” मिथिलेश आगे जोड़ते हैं, “गांव में अगर 10-15 खंभों के लिए सोलर लाइट आती है, तो बस 3-4 लगती हैं. बाकी पैसों का पता नहीं चलता.”
“तेजस्वी आते हैं, पर जनता तक पहुंचना मुश्किल”
सुशीला देवी बताती हैं कि उन्हें अच्छा लगा जब किशोर लोगों से सीधे बात करते हैं. “नेता सिर्फ चुनाव के वक्त आते हैं. तेजस्वी यादव भी आते हैं, लेकिन उनके चारों ओर समर्थक और नेता घिरे रहते हैं. आम लोग अपनी समस्या कहां और कैसे बताएं?” वे कहती हैं, “नेता अगर जनता से दूरी बनाए रखेंगे, तो भरोसा कैसे बनेगा? नेताओं को सबकी सुननी चाहिए.”
सवर्णों की नाराजगी और नीतीश की ‘सड़क राजनीति’
राघोपुर में यादव और दलित बहुल जनसंख्या है, लेकिन सवर्ण मतदाता खुलकर तेजस्वी यादव से नाराजगी जताते हैं. एक स्थानीय ब्राह्मण मतदाता कहते हैं, “तेजस्वी जी 10 साल से विधायक हैं, उनके परिवार ने इससे पहले 10 साल तक राज किया. फिर भी यहां कॉलेज या अस्पताल नहीं है. हमें हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए पटना या हाजीपुर जाना पड़ता है. अगर नीतीश जी न होते, तो गांधी मैदान तक पहुंचने में घंटों लग जाते. उन्होंने सड़कों का जाल बिछाया है. एक और मौका मिला, तो और विकास होगा.”
तेजस्वी की मुश्किल - वादों पर भरोसा नहीं, लेकिन पहचान अब भी कायम
तेजस्वी यादव का “हर परिवार को एक सरकारी नौकरी” वाला वादा भले ही लोगों को अविश्वसनीय लग रहा हो, लेकिन राघोपुर में RJD की पहचान और लालू परिवार का प्रभाव अब भी बरकरार है. लोग कहते हैं कि “विकास भले न हुआ हो, लेकिन लालू परिवार ने हमारी बात सुनी है.” यही भावनात्मक जुड़ाव उन्हें तीसरी बार भी जीत दिला सकता है. हालांकि बेरोजगारी, कटाव, पलायन, भ्रष्टाचार और सरकारी योजनाओं की विफलता जैसे मुद्दे जनता के भीतर गहराई से मौजूद हैं. लेकिन जब बात वोट की आती है, तो राघोपुर आज भी कहता है, “तेजस्वी जी हमारे हैं, बाकी तो सब बाहर वाले हैं.”
राघोपुर का यह चुनाव सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि लालू परिवार की विरासत और तेजस्वी यादव के भविष्य की परीक्षा है. यहां जनता के सामने वादे बड़े हैं, लेकिन हकीकत अब भी अधूरी. लोगों के भीतर निराशा जरूर है, पर उम्मीदों का सिरा अब भी RJD से जुड़ा है, शायद इसलिए कि राघोपुर में राजनीति, सिर्फ सत्ता का खेल नहीं, बल्कि पहचान और वफादारी का प्रतीक भी है.